पर है जानी-पहचानी सी
सब की जुबानी सुनी सी,
पर है फिर भी अनसुनी सी
कभी हाँ तो कभी ना,
कभी ऐसी तो कभी वैसी
ये ज़िन्दगी है एक पहेली,
एक अनसुलझी पहेली सी
कभी रोना कभी हसना है,
कभी छुपाना तो कभी जाताना है
कभी आना कभी जाना है,
कहीं रूठना तो कहीं मानना है
यहाँ कोई अपना कोई पराया है,
कोई अपना होकर भी इतना बेगाना है
कहीं प्यार की बहती नदियाँ,
तो कहीं नफरत का अंगारा है
क्या ये जागती आँखों से देखा एक सपना है
क्यूँ कोई दिल को लगता है अपना सा क्यूँ कोई अपने को है इतना प्यारा सा
क्यूँ उसी के आने का इंतज़ार है
क्यूँ इस भीड़ में एक वही लगता अपना है
कैसी ये उलझन कैसा ये भंवर है
जो है अपना उसी को खोने का डर है
ये ज़िन्दगी एक सपना है,
एक उलझा एक अनकहा सपना ही तो है
है एक अनसुलझी पहेली सी ये ज़िन्दगी एक अनकही पहेली सी ...
well written!!!
ReplyDeleteअच्छा लिखा है उम्मीद है आगे भी ऐसी रचनाएं लिखती रहेंगी
ReplyDeletenice....welcome this sensitive poem...
ReplyDeleteThanx To All Of You !!!
ReplyDeleteBabes u toh got compliements..ummmmmmmmmmmmm...
ReplyDeletewhat shud i say?..........accha likha h ya phir nice attempt..or hmmm gud..or ......ummmmmmmmmmmmmmmmmm.......bole toh tussi cha gye jiiii
एक अनकही कहानी सी, पर है जानी-पहचानी सी
ReplyDeleteसब की जुबानी सुनी सी, पर है फिर भी अनसुनी सी
कभी हाँ तो कभी ना, कभी ऐसी तो कभी वैसी
ये ज़िन्दगी है एक पहेली, एक अनसुलझी पहेली सी
yahi to teri meri kahani hai..ek dhundse aana hai,ek dhundme jana hai..
abe yaar iti tumne likhi hai.. vishwas nahi hota .. sach bata kanha se tapi hai :)... achhca mail karke batana sabse samne nahi batana.. jokes apart .. bahut achchi hai ..awesome ..... gud yaar .. Chha gaye..:)
ReplyDeletethanx ankit....yaar tumhe itna time to mila
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें